"अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने। आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"
"अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने। आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"
|| गुरुक्षेत्र को प्रणाम ||
|| गुरुक्षेत्र को प्रणाम ||
क्या मैं आध्यात्मिक हूँ?
जैसे ही यह प्रश्न आपके मन में उठे कि क्या आप आध्यात्मिक है तो समझ जाइए आपका चित्त या तो आध्यात्मिक है या आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर है।
अब इसे और अच्छे से समझते है, इसे समझने के पहले कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते है कि आध्यात्मिकता क्या नहीं है।
उदाहरण १
मान लीजिए आप एक छात्र अथवा छात्रा है तो आप अपने विषयों के आस पास ही सोचेंगे। यदि आप विज्ञान के छात्र है तो आप विज्ञान से संबंधित विषयों पर ही विचार या अध्ययन करेंगे जैसे रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान आदि। यदि आप गणित के छात्र है तो आप गणित के सूत्र, अभियान्त्रिकी, कंप्यूटर आदि के बारे में अध्ययन करेंगे। कला के छात्र, कला के क्षेत्र में कार्य करेंगे। कोई वैज्ञानिक बनेगा, तो कोई चिकित्सक, तो कोई इंजीनियर, तो कोई अभिनेता। यदि ध्यान से देखा जाये तो सभी लोग भौतिक जगत के किसी न किसी क्षेत्र में कार्य करेंगे और भौतिक जगत को अधिक सुंदर तथा सुविधाजनक बनाने में कार्य करेंगे। क्या यह आध्यात्मिकता है? नहीं, यह नहीं है।
उदाहरण २
मान लीजिए आप एक साधारण से व्यक्ति है जो की अपनी उत्तरजीविता में व्यस्त है। आप प्रतिदिन सुबह पूजा-पाठ करके अपने काम पर जाते है और सारा दिन आप कार्यालय में व्यस्त रहते है, कार्य कुछ भी, किसी भी प्रकार का हो सकता है। शाम को घर आने के बाद भी आप कार्यालय के काम-काज के बारे में ही विचार करते है। समय मिलते ही आप पत्नी और बच्चों के बारे में सोचने लग जाते है, उनकी आवश्यकताओं के बारे में सोचने लग जाते है। अब आप अपना पूरा जीवन इसी के आस पास व्यतीत कर देंगे। यदि देखा जाये तो आप मात्र भौतिक सुख सुविधाओं के आस पास ही पूरा जीवन व्यतीत कर देते है। और फिर जब बुढ़ापा आएगा तो भगवान के भजन करेंगे और कुछ तीर्थ स्थानों में हो कर आ जाएँगे। क्या आप इस जीवन को आध्यात्मिक बोलेंगे? नहीं, यह जीवन बिल्कुल भी आध्यात्मिक नहीं है ।
उदाहरण ३
अब मान लीजिए आप एक समृद्ध परिवार से आते है, आपके पास किसी भी वस्तु और सुख सुविधाओं की कमी नहीं है। आपका शिक्षण देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों और महाविद्यालयों में हुआ है। आप अपने ही पैतृक या स्वयं का बनाया हुआ व्यवसाय का प्रसार करना चाहते है। तो आपका पूरा ध्यान व्यवसाय को अधिक अच्छा कैसे कर सकते है, अधिक ग्राहकों तक कैसे पहुँच सकते है, इस पर रहेगा। फिर जब भी समय मिलेगा तो देश-विदेश में छुट्टियाँ मनाने में जाएगा। मन को संतुष्ट करने के लिए मंदिरों और बड़े बड़े धार्मिक संस्थाओं को दान देते है। यदि ठीक ठीक देखा जाये तो आप मात्र भौतिक सुख सुविधाओं के आस पास ही पूरा जीवन व्यतीत कर देते है और भौतिकता में ही रस लेते है। क्या आप इस जीवन को आध्यात्मिक बोलेंगे? नहीं, यह जीवन बिल्कुल भी आध्यात्मिक नहीं है ।
इस तरह के और भी उदाहरण दिये जा सकते है, सारे के सारे उदाहरण भौतिकता के तल से आरंभ होकर भौतिकता पर ही समाप्त हो जाते है।
उदाहरण ४
अब मान लीजिए आप इस प्रकार के व्यक्ति है जिसके पास जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में भौतिक वस्तुएँ और सुविधाएँ है। जिसको यह ज्ञात है कि जीवन तो ठीक ही चल रहा है, अधिक सुख सुविधा लेकर भी जीवन में कुछ विशेष नहीं हो पाएगा। जीवन एक दिन आरंभ हुआ है, एक दिन समाप्त हो जाएगा। उसके बाद क्या होगा? जीवन से पहले क्या था? यह संसार तो यथारूप चलता रहेगा परंतु यह संसार क्या है? मैं इस संसार में आया ही क्यों हूँ? यदि आपको लगता है, जीवन में सब कुछ ठीक चल रहा है फिर भी कुछ शेष है, आप संतुष्ट नहीं है, कुछ अधूरा सा लगता है। प्रत्येक वस्तु, परिस्तिथि में कोई न कोई प्रश्न आता है और उन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे है। यदि आपको लगता है कि आप में विरक्ति भाव आ रहा है। यदि आप दर्शन के विभिन्न धाराओं में स्वयं को इच्छुक पाते है तो यह कहा जा सकता है कि आप आध्यात्मिक है। आप आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर है।
अब प्रश्न यह है कि मुझे तो ज्ञात हो गया कि मैं आध्यात्मिक हूँ, अब क्या? मुझे मेरे प्रश्नों के उत्तर कैसे मिलेंगे? तो इसका उत्तर है, आप सर्वप्रथम स्वयं को जाने, आत्मज्ञान ले। स्वयं का मूल्यांकन करे और यह पता करे कि आप दर्शन के कौन से मार्ग को अपना सकते है। सबसे महत्वपूर्ण है कि गुरु खोजे।
मैं आने वाले लेखों में बताने का प्रयास करूँगा कि कौन आध्यात्मिक मार्ग आप के लिये सही रहेगा और गुरु कैसे खोजे।
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प्रणाम एवम् धन्यवाद 🙏
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